Wednesday 4 March 2015

All about travel in India: मेरी कश्मीर यात्रा

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Wednesday 17 December 2014

दुःखों से छुटकारा

दोस्तों आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद की अपने अपना कुछ समय मुझे दिया।  दोस्तों इस ब्लॉग का नाम है प्रॉब्लम की चाबी और इसको लिखने का सिर्फ एक ही उद्देश है की - जीवन की प्रॉब्लम को कम किया जाये। अगर मै किसी एक को भी प्रॉब्लम की चाबी दे सका तो मुझे मेरे जीने का अफसोश नहीं होगा। जब मै जॉब करता था तो मेरा एक बॉस था जिसने मुझे सिर्फ एक चीज़  सिखाईं की - बेटा जीवन में हर जगह प्रॉब्लम आएगी लेकिन हमें प्रॉब्लम को नहीं उसके समाधान, उस प्रॉब्लम का सलूशन ढूढ़ना है, और अपना सारा ध्यान सिर्फ उस प्रॉब्लम को सॉल्व (ठीक) करने में लगाना हैं. तब तक उस प्रॉब्लम के बारे में सोचे जब तक कोई सही समाधान (सलूशन) नहीं मिल जाता।

दोस्तों मुझे अंग्रेजी पढ़नी, लिखनी और बोलनी नहीं आती थी लेकिन आज मै दिल्ली में अंग्रेजी बोलना सिखाता हूँ. और अभी तक बहुत सारे लोगो को अंग्रेजी सीखा चूका हूँ. मुझे किसी ने बताया है की कोई भी कुछ भी सीख सकता हैं, अगर वो चाहे तो. मेरे पर्चे पर एक लाइन लिखी हैं  जो इस प्रकार है "कोई भी अंग्रेजी बोलना सीख  सकता हैं" और मैं किसी को भी अंग्रेजी बोलना सीखा सकता हूँ , अगर वो चाहे तो. 

एक बात तो बताना ही भूल गया हूँ कि मैंने स्कूल टाइम में कभी पढ़ाई नहीं की. मैं अपनी क्लास के सबसे बेवकूफ स्टूडेंट में से एक था और बहुत नक़ल करने के बाद भी मेरे ३३% बहुत मुश्किल से आते थे. मैं वो हूँ जो १२ वी क्लास तक अंग्रेजी के नाम से १ मील दूर भाग जाता था. दोस्तों मुझे लगता है की अगर मैं अपनी इस प्रोब्लेम की चाबी ढूढ़ सकता हूँ तो आप भी अपनी किसी भी प्रॉब्लम की चाबी ढूढ़ सकते है. नीचे मेरी अंग्रेजी की पाठशाला का लिंक और कुछ फोटो हैं.      

पाठशाला का पहला पर्चा 

बच्चो के साथ कुछ फोटो 

कभी कभी घर के बाहर  भी क्लास होती हैं 

एक और क्लास 
घर पर मेरे मित्र संजय और मै  

सबको अंग्रेजी बोलना सीखा रहा हूँ क्योंकि अंग्रेजी ने मुझे बहुत परेशान किया 


दुःखों से छुटकारा पाने के उपाए।
आप सब ने बहुत बार ये सुना होगा की प्रेजेंट में जिओ (वर्तमान में जीओ), दोस्तों मैंने कही पढ़ा है की जब हम प्रेजेंट में जीते है तो उस समय हमारे पास सिर्फ वही समय होता है. अगर हम उस समय को जीना सीख ले तो उस समय न कोई बीती हुई बात हमें परेशान करेगी और न कोई आगे होने वाली बात क्योंकि हम सिर्फ उस समय को जिएंगे। हम उस वक्त जहाँ होंगे, जैसे होंगे उसमे खुश रहने की कोशिश करेंगे। आप के पास जो कुछ भी हो उसी में खुश रहे, दिल से महसूस करे की आप खुश है. आप सोच रहे होंगे कि ये क्या बकवास बोल रहा है लेकिन एक बार try जरूर करना। ये सोचे की ऊपर वाले ने जो दिया है वो ठीक दिया है और मेरे कर्मों के अनुसार ही दिया है. 

एक बात और अगर हम ईश्वर से भिखारी  की तरह कुछ भी मांगेगे तो हमको वही  मिलेगा जो हम एक भिखारी को देते है. जब हम भगवान से कुछ वैसे ही मांगते है तो भगवन भी हमको वैसे ही ट्रीट करते है जैसे हम एक भिखारी को करते है.  

शायरी

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल जिंदगानी फिर कहाँ. 
जिंदगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ। 

Tuesday 16 December 2014

सर्दी

सर्दी 

एक बार मुझे मेरे गाँव का सरपंच बना दिया गया..गाँव वालो ने सोचा की छोरा पड़ा लिखा हैसमझदार है, अगर ये सरपंच बन गया तो गाँव की भलाई के लिए काम करेगा..मौसम बदला, सर्दियों के आने के महीने भर पहले गाँव वालो ने मुझसे पूछा की सरपंच साहब इस बार सर्दी कितनी तेज पड़ेगी..

मैंने गाँव वालों से कहा की मैं आपको कल बताऊंगा..

मैं तुरंत ही शहर की और निकल गया..वहा जाकर मौसम विभाग में पता किया तो मौसम विभाग वाले बोले की सरपंच साहब इस बार बहुत तेज सर्दी पड़ने वाली है..

मैंने भी दुसरे दिन गाँव में आकर ऐसा ही बोल दिया

गाँव वालो को विश्वास था की अपने सरपंच साहब पढ़े लिखे हैं..शहर से पता करके आये हैं तो सही कह रहे होंगे..गाँव वालो की नजर में मेरी इज्जत और बढ़ गयी..
तेज सर्दिया पड़ने की बात सुनकर गाँव वालो ने सर्दी से बचने के लिए लकडिया इक्कठी करनी शुरू कर दी.महीने भर बाद जब सर्दियों का कोई नामोनिशान नहीं दिखा तो गाँव वालो ने मुझसे फिर पूछा..मैंने उन्हें फिर दुसरे दिन के लिए टाला..और शहर के मौसम विभाग में पहुँच गया..

मौसम विभाग वाले बोले की सरपंच साहब आप चिंता मत करो इस बार सर्दियों के सरे रिकॉर्ड टूट जायेंगे..

मैंने ऐसा ही गाँव में आकर बोल दिया..

मेरी बात सुनकर गाँव वाले पागलो की तरह लकडिया इक्कठी करने लग गए..इस तरह पंद्रह दिन और बीत गए लेकिन सर्दियों का कोई नामोनिशान नहीं दिखा..गाँव वाले फिर मेरे पास आये..मैं फिर मौसम विभाग जा पहुंचा..

मौसम विभाग वालो ने फिर वही जवाब दिया की सरपंच साहब आप देखते जाइये की सर्दी क्या जुलम ढाती है ?

मैंने फिर से गाँव में आकर ऐसा ही बोल दिया..अब तो गाँव वाले सारे काम धंधे छोड़कर सिर्फ लकडिया इक्कठी करने के काम में लग गए..इस तरह पंद्रह दिन और बीत गए..लेकिन सर्दिया शुरू नहीं हुई..गाँव वाले मुझे कोसने लगे..मैंने उनसे एक दिन का वक्तऔर माँगा..

में तुरंत मौसम विभाग पहुंचा तो उन्होंने फिर ये जवाब दिया की सरपंच साहब इस बार सर्दियों के सारे रिकॉर्ड टूटने वाले हैं..अब मेरा भी धैर्य जवाब दे गया..
मैंने पूछा आप इतने विश्वास से कैसे कह सकते हैं. मौसम विभाग वाले बोले की सरपंच साहब हम पिछले दो महीने से देख रहे हैंपड़ोस के गाँव वाले पागलो की तरह लकडिया इक्कठी कर रहे हैं..इसका मतलब सर्दी बहुत तेज पड़ने वाली है…..

स्टोरी फ्रॉम : http://realstory.co.in

पागल आदमी

दोस्तों माफ़ करना क्योंकि ये मेरी स्टोरी नहीं है मैंने कही से आपके लिया कॉपी की है. 

पागल आदमी
एक बार एक आदमी पागलखाने के पास से गुजर रहा था कि उसकी गाड़ी पंचर हो गई. उसने वहीं अपनी गाड़ी खड़ी की और उसका पहिया खोल कर बदलने की कोशिश करने लगा. तभी पागलखाने की खिड़की से झांकता हुआ एक पागल उस आदमी से पूछ बैठा, “भैया आप क्या कर रहे हो?”
आदमी ने पागल की ओर देखा और मुंह बना कर चुप रह गया. उसने सोचा कि इस पागल के मुंह क्या लगना? उसने उस पहिये के चारों स्क्रू खोल दिए, और टायर बदलने ही वाला था कि कहीं से वहां भैंसों का झुंड आ गया. वो आदमी वहां से भाग कर किनारे चला गया. जब भैंसे चली गईं तो वह दुबारा गाड़ी के पास आया कि टायर बदल ले. जब वो वहां पहुंचा तो उसने देखा कि जिस पहिए को उसने खोला था उसके चारों स्क्रू गायब हैं. वो बड़ा परेशान हुआ. उसकी समझ नहीं पा रहा था कि अब वो क्या करे. पहिया खुला पड़ा था, चारों स्क्रू भैंसों की भगदड़ में गायब हो गए थे.
वो परेशान होकर इधर-उधर तलाशने लगा. तभी खिड़की से फिर उसी पागल ने पूछा कि भैया क्या हुआ? परेशान आदमी ने झल्ला कर कहा, “अरे पागल मैंने पहिया बदलने के लिए चारों स्क्रू बाहर निकाले थे अब मिल नहीं रहे. क्या करूं समझ में नहीं आ रहा, ऊपर से तुम सिर खा रहे हो.
उस पागल ने वहीं से कहा, “भैया स्क्रू नहीं मिल रहे तो कोई बात नहीं. आप बाकी तीनों पहियों से एक एक स्क्रू निकाल कर चौथे पहिए को तीन स्क्रू लगाकर टाइट कर लीजिए और फिर गैराज जाकर नए स्क्रू लगवा लीजिएगा. ऐसे परेशान होने से तो कुछ नहीं होने वाला.
आदमी चौंका. बात तो पते की थी. चार की जगह तीन स्क्रू पर गाड़ी चल जाती. उसने पागल की ओर देखा और कहा, “यार बात तो तुमने ठीक कही है, लेकिन बताओ जब तुम इतने समझदार हो तो यहां पागलखाने में क्या कर रहे हो?”
पागल ने वहीं से जवाब दिया, “भैया, मैं पागल हूं, मूर्ख थोड़े ही हूं?” 

विजेता मेंढक | An Inspirational Hindi Stories

विजेता मेंढक | An Inspirational Hindi Stories

बहुत समय पहले की बात है एक सरोवर में बहुत सारे मेंढक रहते थे . सरोवर के बीचों -बीच एक बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था . खम्भा काफी ऊँचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी .

एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक रेस करवाई जाए . रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा , और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच जाएगा वही विजेता माना जाएगा .

रेस का दिन आ पंहुचा , चारो तरफ बहुत भीड़ थी ; आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में हिस्सा लेने पहुचे . माहौल में सरगर्मी थी , हर तरफ शोर ही शोर था .

रेस शुरू हुई

लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआकि कोई भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा
हर तरफ यही सुनाई देता
अरे ये बहुत कठिन है
वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे

सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं , इतने चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता

और यही हो भी रहा था , जो भी मेंढक कोशिश करता , वो थोडा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता ,कई मेंढक दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे

पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी , “ ये नहीं हो सकता , असंभव ”, और वो उत्साहित मेंढक भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास छोड़ दिया .

लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था , जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था ….वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा ,और अंततः वह खम्भे के ऊपर पहुच गया और इस रेस का विजेता बना .

उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ , सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे ,” तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया , भला तुम्हे अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ?”
तभी पीछे से एक आवाज़ आई … “अरे उससे क्या पूछते हो , वो तो बहरा है

Friends,
अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं . आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं. और तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा.

स्टोरी फ्रॉम। www.realstory.co.in